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साधो मग डगमग पग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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साधो मग डगमग पग,
तमस्तरण जागे जग।
शाप-शयन सो-सोकर,
हुए शीर्ण खो-खोकर,
अनवलाप रो-रोकर
हुए चपल छलकर ठग।
खोलो जीवन बन्धन,
तोलो अनमोल नयन,
प्राणों के पथ पावन,
रँगो रेणु के रँग रग।