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सुरतरु वर शाखा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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सुरतरु वर शाखा
खिली पुष्प-भाषा।

मीलित नयनों जपकर
तन से क्षण-क्षण तपकर
तनु के अनुताप प्रखर,
पूरी अभिलाषा।

बरसे नव वारिद वर,
द्रुम पल्लव-कलि-फलभर
आनत हैं अवनी पर
जैसी तुम आशा।

भावों के दल, ध्वनि, रस
भरे अधर-अधर सुवश,
उघरे, उर-मधुर परस,
हँसी केश-पाशा।