Last modified on 19 अक्टूबर 2009, at 11:33

अरघान की फैल / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:33, 19 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |संग्रह=आराधना / सूर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अरघान की फैल,
मैली हुई मालिनी की मृदुल शैल।

लाले पड़े हैं,
हजारों जवानों कि जानों लड़े हैं;
कहीं चोट खाई कि कोसों बढ़े हैं,
उड़ी आसमाँ को खुरीधूल की गैल-
अरघान की फैल।

काटे कटी काटते ही रहे तो,
पड़े उम्रभर पाटते ही रहे तो,
अधूरी कथाओं,
करारी व्यथाओं,
फिरा दीं जबानें कि ज्यों बाल में बैल।