भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहती है इतना न करो तुम इसरार / जाँ निसार अख़्तर

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:37, 19 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहती है इतना न करो तुम इसरार
गिर जाऊँगी ख़ुद अपनी नज़र से इक बार

ऐसी तुम्हें ज़िद है तो इस प्याले में
मेरे लिए सिर्फ छोड़ देना इक प्यार