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अंतिम दिन यह दुनिया / मालचंद तिवाड़ी
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अंतिम दिन यह दुनिया
कविता होगी
अंतिम वृक्ष
प्रीत के मरुस्थलों
निपजेगी केवल प्रीत
चिड़िया लेगी फिर विश्राम
वृक्षों की रेशमी छाँव में ।
पहले दिन की तरह
अंतिम दिन यह दुनिया-
फिर से तेरी मेरी होगी ।
अनुवादः नीरज दइया