भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हंसो अधरधरी हंसी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:28, 20 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अर्चना / सूर…)
हंसो अधर-धरी हंसी,
बसो प्राण-प्राण-बसी।
करुणा के रस ऊर्वर
कर दो ऊसर-ऊसर
दुख की सन्ध्या धूसर
हीरक-तारकों-कसी।
मोह छोह से भर दो,
दिशा देश के स्वर हो,
परास्पर्श दो पर को,
शरण वरण-लाल-लसी।
चरण मरण-शयन-शीर्ण,
नयन ज्ञान-किरण-कीर्ण,
स्नेह देह-दहन-दीर्ण,
रहन विश्व-वास-फंसी।