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हंसो अधरधरी हंसी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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हंसो अधर-धरी हंसी,
बसो प्राण-प्राण-बसी।

करुणा के रस ऊर्वर
कर दो ऊसर-ऊसर
दुख की सन्ध्या धूसर
हीरक-तारकों-कसी।

मोह छोह से भर दो,
दिशा देश के स्वर हो,
परास्पर्श दो पर को,
शरण वरण-लाल-लसी।

चरण मरण-शयन-शीर्ण,
नयन ज्ञान-किरण-कीर्ण,
स्नेह देह-दहन-दीर्ण,
रहन विश्व-वास-फंसी।