भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आजु मैं गाई चरावन जैहों / सूरदास
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:51, 20 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} Category:पद<poem>आजु मैं गाई चरावन जैहों बृंदा…)
आजु मैं गाई चरावन जैहों
बृंदाबन के भाँति भाँति फल, अपने कर मैं खैहौं।
ऎसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।
तनक तनक पग चलिहौ कैसें, आवत ह्वै है राति।
प्रात जात गैया लै चारन, घर आवत है साँझ।
तुम्हारौ कमल बदन कुम्हलैहै, रेंगत घामहिं माँझ।
तेरी सौं मोहि घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक।
सूरदास प्रभु कहयौ न मानत, परयौ आपनी टेक॥