Last modified on 21 अक्टूबर 2009, at 06:06

धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:06, 21 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }}<poem>धन्य ये मुनि वृन्दाबन …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी।
दरसन हेतु बिहंगम ह्वै रहे, मूरति मधुर उपासी।
नव कोमल दल पल्लव द्रुम पै, मिलि बैठत हैं आई।
नैनन मूँदि त्यागि कोलाहल, सुनहिं बेनु धुनि माई।
प्राननाथ के मुख की बानी, करहिं अमृत रस-पान।
'हरिचंद' हमको सौउ दुरलभ, यह बिधि गति की आन॥