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चल मुसाफ़िर बत्तियां जलने लगीं / बशीर बद्र

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चल मुसाफ़िर बत्तियाँ जलने लगीं
आसमानी घंटियाँ बजने लगीं

दिन के सारे कपड़े ढीले हो गए
रात की सब चोलियाँ कसने लगीं

डूब जायेंगे सभी दरिया पहाड़
चांदनी की नदियाँ चढ़ने लगीं

जामुनों के बाग़ पर छाई घटा
ऊदी ऊदी लड़कियाँ हंसने लगीं

रात की तन्हाइयों को सोचकर
चाय की दो प्यालियाँ हंसने लगीं

दौड़ते हैं फूल बस्तों को दबाए
पाँवों-पाँवों तितलियाँ चलने लगीं