Last modified on 21 अक्टूबर 2009, at 23:56

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे / बशीर बद्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:56, 21 अक्टूबर 2009 का अवतरण ("जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे / बशीर बद्र" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे

हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे

घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते-आते ज़माने लगे

कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे

वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे

पढाई-लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे