भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पथ पर बेमौत न मर / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 22 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=अर्चना / सूर…)
पथ पर बेमौत न मर,
श्रम कर तू विश्रम-कर।
उठा उठा करद हाथ,
दे दे तू वरद साथ,
जग के इस सजग प्रात
पात-पात किरनें भर।
बढ़ा बढ़ा कर के तन,
जगा जगा निश्चेतन,
भगा भीरु जीवन-रण
सर-सर से उभर सुघर।
चलते चलते छुटकर
द्रुम की मधुलता उतर
विधुर स्पर्श कर पथ पर
युवा-युवतियों के सर।