भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं / सूरदास

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:04, 23 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं।
तब ये लता लगति अति सीतल¸ अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं।
बृथा बहति जमुना¸ खग बोलत¸ बृथा कमल फूलैं अलि गुंजैं।
पवन¸ पानी¸ धनसार¸ संजीवनि दधिसुत किरनभानु भई भुंजैं।
ये ऊधो कहियो माधव सों¸ बिरह करद करि मारत लुंजैं।
सूरदास प्रभु को मग जोवत¸ अंखियां भई बरन ज्यौं गुजैं।