भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आबे ज़मज़म से कहा मैंने / अकबर इलाहाबादी

Kavita Kosh से
अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 23 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अकबर इलाहाबादी }} {{KKCatGhazal}} <poem> आबे ज़मज़म से कहा मैं…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आबे ज़मज़म से कहा मैंने मिला गंगा से क्यों
क्यों तेरी तीनत में इतनी नातवानी आ गई?
वह लगा कहने कि हज़रत! आप देखें तो ज़रा
बन्द था शीशी में, अब मुझमें रवानी आ गई