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घर में कई कमरे / हरजेन्द्र चौधरी
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घर में कई कमरे
कई कमरों में कई-कई अलमारियाँ
कई-कई अलमारियों में कई-कई ख़ाने
कई-कई ख़ानों में कई-कई चीज़ें (बेतरतीब)
कई-कई चीज़ों बीच कई-कई डायरियाँ (नई-पुरानी)
कई-कई डायरियों बीच कई-कई लिफ़ाफ़े (रंग-बिरंगे)
कई-कई लिफ़ाफ़ों में कई-कई छोटी डायरियाँ
कई छोटी-छोटी डायरियों में कई-कई पन्ने
किसी पन्ने के आख़िर-सी में
कोड-भाषा में लिखी एकाध डरी हुई पंक्ति
कितने गहरे गाड़कर रखते हैं लोग छुपाकर
अपनी असली ज़िन्दगी, असली बात
असली कहानी, असली कविता
ख़ुद खोजना चाहें तो भी न मिले...
रचनाकाल : 1999, नई दिल्ली