भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रक्त झर-झर... / हरजेन्द्र चौधरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 24 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरजेन्द्र चौधरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> बन्द होगा ब…)
बन्द होगा बन्द होगा
अभी बन्द होगा रक्त रिसना
बन्द होगा बन्द होगा
अभी बन्द होगा क़लम घिसना
...इस उम्मीद्में
अभी तो टपक ही रहे हैं
टपकते ही जा रहे हैं
आत्मा के प्राचीन घाव
जो मुझे याद नहीं
समय की फ़र्राटेदार सड़क पर
किस दुर्घटना से मिले थे
टीस नहीं रहे इस क्षण
केवल टपक रहे हैं
निचुड़ रहा है रक्त
देह और आत्मा का
आ रही है कविता झर-झर...
रचनाकाल : जनवरी 1999, नई दिल्ली