भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जैसे चाँद पर से दिखती धरती. / हरजेन्द्र चौधरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 24 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरजेन्द्र चौधरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ऐसे दिख रही…)
ऐसे दिख रही है ज़िन्दगी
कविता में
जैसे चाँद पर से
दिखती धरती
हेलीकॉप्टर से दिखती
चढ़ी हुई नदी और बाढ़
उतनी दूर नहीं
पर जितनी साफ़ उजली बेपर्द
बिल्कुल नंगी उद्विग्न
साबुत और तार-तार
घुटनों तक धँसी आत्मा
लिथड़ी है कीचड़ में
चाँद पर सुनाई पड़ रही
धरती की चीख़-पुकार...
रचनाकाल : 1999, नई दिल्ली