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अग्नि परीक्षा / हरिवंशराय बच्चन

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यह मानव की अग्नि-परीक्षा।

बढ़ती हैं लपटें भयकारी
अगणित अग्नि-सर्प-सी बन-बन,
गरुड़ व्यूह से धँसकर इनमें
इनका कर स्वीकार निमंत्रण;
देख व्यर्थ मत जाने पाये विगत युगों की शीक्षा-दीक्षा।
यह मानव की अग्नि-परीक्षा।

सच है, राख बहुत कुछ होगा
जिस पर मोहित है तेरा मन,
किंतु बचेगा जो कुछ, होगा
सत्य और शिव, सुंदर कंचन;
किंतु अभी तो लड़ ज्वाला से, व्यर्थ अभी अज्ञात-समीक्षा।
यह मानव की अग्नि-परीक्षा।

खड़े स्वर्ग में बुद्ध, मुहम्मद
राम, कृष्ण, औ’ ईशा नरवर,
मानवता को उच्च उठाने-
वाले अनगिन संत-पयंबर
साँस रोक अपलक नयनों से करते हैं परिणाम-प्रतीक्षा।
यह मानव की अग्नि-परीक्षा।