भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सखि! रघुनाथ-रूप निहारु / तुलसीदास

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 26 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सखि! रघुनाथ-रूप निहारु।
सरद-बिधु रबि-सुवन मनसिज-मानभंजनिहारु॥
स्याम सुभग सरीर जनु मन-काम पूरनिहारु।
चारु चंदन मनहुँ मरकत सिखर लसत निहारु॥
रुचिर उर उपबीत राजत, पदिक गजमनिहारु।
मनहुँ सुरधनु नखत गन बिच तिमिर-भंजनिहारु॥
बिमल पीत दुकूल दामिनि-दुति, बिनिंदनिहारु।
बदन सुखमा सदन सोभित मदन-मोहनिहारु॥
सकल अंग अनूप नहिं कोउ सुकबि बरननिहारु।
दास तुलसी निरखतहि सुख लहत निरखनिहारु॥