भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहे-2 / राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:48, 28 अक्टूबर 2009 का अवतरण ("दोहे-2 / राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब उदय भान और रानी केतकी दोनों मिले।
आस के जो फूल कुम्हलाये हुए थे फिर खिले।

चैन होता ही न था जिस एक आसन एक बिन,
रहने-सहने से लगे आपस में अपने रात-दिन।

ऐ खिलाड़ी, यह बहुत था कुछ नहीं थोड़ा हुआ,
आन कर आपस में जो दोनों के गठजोड़ा हुआ।

चाह के डूबे हुए, ऐ मेरे दाता, सब तिरें,
दिन फिरे जैसे इन्हीं के वैसे अपने दिन फिरें।