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लड़खड़ाते हुए तुमने जिसे देखा होगा / जगदीश तपिश
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लड़खड़ाते हुए तुमने जिसे देखा होगा
वो किसी शाख़ से टूटा हुआ पत्ता होगा
अजनबी शहर मैं सब कुछ ख़ुशी से हार चले
कल इसी बात पे घर-घर मेरा चर्चा होगा
ग़म नहीं अपनी तबाही का मुझे दोस्त मगर
उम्र भर वो भी मेरे प्यार को तरसा होगा
दामने ज़ीस्त फिर भीगा हुआ-सा आज लगे
फिर कोई सब्र का बादल कहीं बरसा होगा
क़ब्र मैं आ के सो गया हूँ इसलिए अय तपिश
उनकी गलियों मैं मरूंगा तो तमाशा होगा