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आजादी की दूसरी वर्षगाँठ / हरिवंशराय बच्चन

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जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवार, मेरा देश है।

काल की गति फेंकती किस पर नहीं अपना अलक्षित पाश है,
सिर झुका कर बंधनों को मान जो लेता वही बस दास है,
थे विदेशी के अपावन पग पड़े जिस दिन हमारी भूमि पर,
हम उठे विद्रोह की लेकर पताका साक्षी इतिहास है;
एक ही संघर्ष दाहर से जवाहर तक बराबर है चला,
जो कि सदियों में नहीं बैठा कभी भी हार, मेरा देश है।
जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवार, मेरा देश है।

जो कि सेना साज आए चूर मद में हिन्द को करने फ़तह,
आज उनके नाम बाकी रह गई है कब्र भर की बस जगह,
किन्तु वह आजाद होकर शान से है विश्व के आगे खड़ा,
और होता जा रहा हि शक्ति से संपन्न हर शामो-सुबह,
झुक रहे जिसके चरण में पीढ़ियों के गर्व को भूले हुए,
सैकड़ों राजों-नवाबों के मुकुट-दस्तार, मेरा देश है।
जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवार, मेरा देश है।

हम हुए आजाद तो देखा जगत ने एक नूतन रास्ता,
सैकड़ों सिजदे उसे, जिसने दिया इस पंथ का हमको पता,
जबकि नफ़रत का ज़हर फैला हुआ था जातियों के बीच में,
प्रेम की ताक़त गया बलिदान से अपने जमाने को बता;
मानवों के शान्ति-सुख की खोज में नेतृत्व करने के लिए
देखता है एक टक जिसको सकल संसार, मेरा देश है।
जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवार, मेरा देश है।

जाँचते उससे हमें जो आज हम हैं, वे हृदय के क्रूर हैं,
हम गुलामी की वसीयत कुछ उठाने के लिए मजबूर हैं,
पर हमारी आँख में है स्वप्न ऊँचे आसमानों के जगे,
जानते हम हैं कि अपने लक्ष्य से हम दूर हैं, हम दूर हैं;
बार ये हट जायेंगे, आवाज़ तारों की पड़ेगी कान में,
है रहा जिसको परम उज्जवल भविष्य पुकार, मेरा देश है।
जो खड़ा है तोड़ कारागार की दीवार, मेरा देश है।