कभी जमा होते थे
कांकेर की खंडी नदी के किनारे
तुम्हारी छाँव में स्वतन्त्रता सेनानी
तुम उनका पसीना पोंछते
योजनाएँ सुनते
हौंसला देखते
आज जब मनाई जा रही हैं
कियों-कैयों की जन्म-शताब्दियाँ
किसे याद होगा तुम्हारे सिवा
इन्दरू केवट का गांधीपना
देखने भर से उसे
तुम्हारी डगालों में
पृथ्वी के नीचे सोई जड़ों से
दौड़ जाता
फुनगी तक उत्साह
और दुनिया अचरज से देखती
छत्तीसगढ़ कीधरती पर
कैसे मौरता है आम
आज किसे याद होगा
सत्याग्रहियों ने एक दिन मड़ई की तरह
तुममें टिकाए थे अपने झंडे
फरफराए थे पत्ते
गाए थे तुमने जोशीले गीत
और क्रान्तिकारियों को
मितान बदने
गिराए थे उनकी झोली में
रसीले आम
ओ ददा
ओ झंडा-आम
अकेले नहीं तुम स्मृतियों से
खारिज
अनजान
सन्दर्भ :
इन्दरू केवट : कांकेर का गांधी नाम से प्रसिद्ध एक स्वतन्त्रता सेनानी
झंडा आम : कांकेर में एक प्रसिद्ध आम का पेड़