भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विधान / अजित कुमार

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:50, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

प्यास तो ऐसी लगी थी-
क्या समन्दर,क्या सितारे
सभी को पी लूँ ,
कामना ऐसी जगी थी-
क्या हमारे, क्या तुम्हारे,
सभी क्षण जी लूँ
किन्तु विधि के उन निषेधों,
उन विरोधों को कहूँ क्या-
जो विवश करते :
प्रीति जो मन में रंगी थी-
तोड़ डालूँ बिन-विचारे,
होंठ को सी लूँ ।