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एक लहर को / अजित कुमार

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तुझे जानता हूँ
तू कुछ भी नहीं कहेगी ।

पर वह उमड़न
जो तुझमें है
अब से
मुझमें
सदा रहेगी ।
लहरों की टकराहट
सुनकर
तू उसको जानेगी ।
साक्षी सातो सागर ।
केवल मैं ही बिखरूँ,
टूटूँ,
उलझूँ ।
तुझ तक पहुँचें
केवल
मेरे फेन-पुष्प
बुदबुद से मेरे गान ।
नहीं ।
साक्षी सातो सागर ।
मेरे कारण
तू
मेरे कारण
कुछ भी नहीं सहेगी ।

लौटा दे उस एक लहर को
अपनी
भीगी-सी अँजुरी
में
भर कर ।