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तीन मृत्यु-लेख / अजित कुमार

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एक

जाग-जाग कर रातें काटीं
जिसने, उसे सुलाने को,
याद रखा था सबको जिसने,
उसकी याद भुलाने को—
शिलालेख यह अंकित है ।

दो

जिसने काफ़ी-कुछ जीता
पर हारा केवल अपने से :
वही अजित जो हुआ पराजित
अपने कल्पित सपने से-
जपता-जपता गया उसे ।
क्या होगा उसको जपने से ।

तीन

गढी हुई सूरत धरती पर गिरकर टूट गई है,
पढी हुई पुस्तक मन पर से धुलकर छूट गई है ।
नए सूत्र में जोड़ेगा कोई छूटे अभ्यास को,
कोई तो सँवार देगा फिर इस खंडित विन्यास को ।