Last modified on 1 नवम्बर 2009, at 23:29

आंगन के पार द्वार खुले / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आंगन के पार
द्वार खुले
द्वार के पार आंगन
भवन के ओर-छोर
सभी मिले--
उन्हीं में कहीं खो गया भवन :
कौन द्वारी
कौन आगारी, न जाने,
पर द्वार के प्रतिहारी को
भीतर के देवता ने
किया बार-बार पा-लागन।