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सफ़ेद फूलों या नीली रातों से / मनीष मिश्र
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सफेद फूलों या नीली रातों से
नहीं जन्मती कविताएँ।
वे घबराया हुआ मौन है,
अभिशप्त प्रेत कथाओं का ।
उखड़ी हुई साँसे, सताई हुई उम्रों की
चिंदी-चिंदी आक्रोश, थके हुए लागों का ।
कब्रो में पड़ी तारीख या
पन्नों में मृत इतिहास नहीं है कविताएँ-
वे आँखे हैं ज़िन्दगी को ताकती हुई
वे सपने हैं काली निराश आँखो के
वे यादें है एक निराश प्रेमी की ।
नफ़रत का कुल्ला करती औरते है वे
सहवास के अन्तिम क्षणों का निर्दोष चेहरा
मृत्यु के पूर्व का गहन मौन
विदा के पूर्व उठने वाले हाथ
आँखों के कोरों पर जमी नमीं है वे ।
सफेद फूलों या नीली रातो में
नहीं जन्मती कविताएँ
वे पनपती है दुख और पसीने के लथपथ विन्यास में ।।