भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उम्र के साथ मौसम बदलते रहे / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:52, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |संग्रह=समंदर ब्याहने आया नहीं है / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उम्र के साथ मौसम बदलते रहे
तुम बदलते रहे हम बदलते रहे

जितनी उपयोगिता जिसकी आँकी गई
उसके अनुसार ही क्रम बदलते रहे

आदमी के इधर स्वार्थ बदले, उधर
उसके हाथों के परचम बदलते रहे

ज़िन्दगी के महायुद्ध में, उम्र-भर
आदमी के पराक्रम बदलते रहे

जितनी उजियार की भीड़ जुटती गई
उसके अनुसार ही तम बदलते रहे