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गूढाशय / सियाराम शरण गुप्त

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स्वर्ण सुमन दे कर न मुझे जब
तुमनें उसको फेंक दिया;
हो कर क्रुद्ध हृदय अपना तब
मैंने तुमसे हटा लिया।

सोचा-मैं उपवन में जा कर
सुमन इन्हें दिखलाऊं ला कर।
मैने सारी शक्ति लगा कर
कण्टक वेष्टन पार किया।

स्वर्ण सुमन दे कर न मुझे जब
तुमने उसको फेंक दिया।
उपवन भर के श्रेष्ठ सुमन सब,
जा कर तोड़ लिये सहसा जब।

समझ तुम्हारा गूढाशय तब,
हुआ विशेष कृतज्ञ हिया।
स्वर्ण सुमन देकर न मुझे जब
तुमनें उसको फेंक दिया।