भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आगन्तुक / अज्ञेय
Kavita Kosh से
आँख ने देखा पर वाणी ने बखाना नहीं।
भावना ने छुआ पर मन ने पहचाना नहीं।
राह मैनें बहुत दिन देखी, तुम उस पर से आए भी, गए भी,
--कदाचित, कई बार--
पर हुआ घर आना नहीं।
डार्टिंगटन हाल, टौटनेस
१८ अगस्त १९५५