भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे जज़्बात मेरे नाम बिके / अनिरुद्ध सिन्हा
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण
मेरे जज़्बात मेरे नाम बिके
उनके ईमान सरे-आम बिके
एक मंडी है सियासत ऎसी
जिसमें अल्लाह बिके राम बिके
पी के बहका न करो यूँ साहब
अब तो मयख़ाने के हर जाम बिके
उनकी बातों का भरोसा कैसा
जिनके मज़मून सुबह-शाम बिके
कैसे इज़हार करूँ उल्फ़त के
मेरे अरमान बिना दाम बिके