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स्मृति की झील / अनूप सेठी
Kavita Kosh से
नीले जल में रोशनियां तैरती हैं
भीतर तक गहरे कांपती जड़ें
रात को झील
सिहरते हुए एहसास की तरह चमकती है
हवा का कोई हल्का झोंका
सतह को सहलाता हुआ उड़ता है
स्मृति छवियों के असंख्य
फूलों से झिलमिल
दमक उठती है झील
(1990)