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एकांतवास / अभिज्ञात
Kavita Kosh से
इस नगर चेतना का प्रतिफल
भाये तुमको नित कोलाहल
मुझको प्रिय मम् एकांतवास।
उनको विस्मृत कर गौरान्वित
जिनकी सुधियों का मैं रखैल
अति दुलार से पोस रहा मैं
इक पीड़ा की अमरबेल
सुन मरुथल की मार्मिक गुहार
मुझसे तू संबल ले उधार
मुझमें तरुणाई का विकास।
मैं चुके-चुके विश्वासों के
अभिनव अभिनय में छला हुआ
अभियोगों का बन शिलाखण्ड
जड़ता साधे हूं ढला हुआ
तुमको भाये, तो नृत्य मेरा
तुमको गाये, वह वह कृत्य मेरा
तुमसे मेरा हर शिलान्यास।