भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाज ना रहे / अभिज्ञात

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:01, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिवा तुम्हारी दो बाहों के
कोई बन्धन आज ना रहे!

तेरे काँधे पर अपना सर
रखकर मैं मर जाऊँ क्या गम
तुझको मीत बनाकर सारा
जग बैरी कर जाऊँ क्या गम
तुम मेरे जीवन के हर
क्षण पर केवल नेह लिखो
जनम-जनम की प्यास बुझा दो
कोई राज़ राज़ ना रहे!

आओ, तपते अधर को अपने
तुम मेरे अधरों पर धर दो
नैंनों की हाला छलकाओ
साँसों में अनुरागी स्वर दो
चिन्तन हेतु बहुत बातें हैं
कर लेना पीछे को सजनी
लाज मेरी इच्छा की रख लो
बाकी कोई लाज ना रहे!