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अल्लाह की जात-अल्लाह के रंग / अमित कल्ला
Kavita Kosh से
इसक
की
कुछ आहट
जरुर लगती है
जिधर देखो
असंख्य दृश्य
अपने सा
अर्थ देते
पढ़-पढ़कर
नन्हे निवेदन
केवडे के फूल
उस अपार नूर का
चुग्गा चुग जाते
अकह को कहकर
अगह को गहकर
कैसी कैसी
गनिमते गिनते हैं
दबा-दबाकर
गहरी रेत में
कितना पकाया जाता
भरी-भरी आँखों के सामने ही
बाहर निकल
पी जाते
अमर बूटी
मीठा महारस
तभी तो
हर इक
चेहरे को
ज्यों की त्यों
अल्लाह की जात
अल्लाह के रंग
का
पता देते हैं
इसक
की