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जिस पर बीता / अरुण कमल

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एक औरत पूरे शरीर से रो रही थी
एक पछाड़ थी वह
हाहाकार

उससे बड़ी एक औरत उसे छाती से
बांधे हुई थी पत्थर बनी
और एक रिक्शा खींच रहा था लगातार
चुप एकटक पैडल मारता

हर घर हर दुकान को उकटेरता
पूरे शहर में घूम रहा था हाहाकार।