भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन पढ़ेगा ? / नरेन्द्र मोहन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण
रंगों की बुनावट में चमक है
अब भी
चमक में छिपा है कोई संदेश
कल का
कल के लिए
गिरती दीवारों पर अंकित है
एक अबूझ लिपि
कौन पढ़ेगा
ढहती इमारत की भाषा ?