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पॉल रोबसन / अली सरदार जाफ़री

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अपने नग़्मे पे कोई नाज़ तुझे हो कि न हो
नग़मा इस बात पे नाज़ाँ है कि है फ़न तेरा
देस हैं दूर बहुत दिल तो बहुत दुर नहीं
मेरे गुलशन ही के पहलू में है गुलशन तेरा
तेरे नग़मे ने लिया देहली-ओ-शीराज़ का दिल
मॉस्को तेरा है ग़र नाता-ओ-लन्दन तेरा
अपनी पलकों से चुना ख़ूने-शहीदाने-हबश
कितने गुलज़ारों से गुलरंग है दामन तेरा
तेरी आवाज़ बिलाले-हबशी<ref>बिलाल नामक हबशी ने हज़रत मुहम्मद साहब के कहने पर मक्का के बुतों की पूजा करने से इन्कार कर दिया था</ref> की है नवा
नूर से दिल के तिरे हर्फ़ है रौशन तेरा
बूए-गुल रह न सकी क़ैद-ए-गुलिस्ताँ में असीर
सरहदें तोड़ के सब फैल गया फ़न तेरा
कृश्न का गीत है, गोकुल की हसीं शाम है तू
आ कलेजे से लगा लें कि सियह फ़ाम है तू

शब्दार्थ
<references/>



नोटः यह नज़्म मॉस्को में पॉल रोबसन से मुलाक़ात के बाद कही गयी।