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सिन्दबाद : दो / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
दुःख की धार पर चलता
बह तेज़ धूप की तरह आया
और सारे कर्ज़ चुकाकर
बन बैठा--बड़ा सौदागर।
परिवर्तित हो गईं
नन्हीं नौकाएं
विशाल जलपोतों में
शामिल हो गईं
एक मासूम चिड़िया
रुकें पक्षी के
सक्षम उड़ान संग।
धरती से---सागर से---आकाश तक
रास्ते बनाता
फिर भी, गर्दिश-दर-गर्दिश
धरती पर वापस आता......
अपने शहर की पुरानी गलियों में
अपना गुमशुदा वजूद तलाशता ।
अंततः असफल होकर
दासों के अपार श्रम को
पूंजी में परिवर्तित करता
सत्ता के तिलिस्म रचता
कामनाओं के द्वार खोलता
सौन्दर्य को स्वर्ण मुद्राओं से तोलता
सुरा-स्नान करता रसिक
लिपटाने लिहाफों में लौटता
फानूसों की जगमग रोशनी तले :
नर्म गलीचों पर भी
करता है-----
यात्रा ! यात्रा ! यात्रा !