Last modified on 6 नवम्बर 2009, at 22:15

गुस्सैल औरत सोचती है / अवतार एनगिल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धूप सने दिन से जूझकर
घर लौटते हुए
वह गुस्सैल औरत
सोचती है-
आज नहीं करूंगी लापरवाही
पहुँचते ही घर
धोकर पाँव
नर्म कपड़े से सुखाऊँगी
आज तो ज़रूर....

आज तो ज़रूर
शांत रहूंगी
चाहे कितना कुछ बिखरा हो
आदमी से अपशब्द नहीं कहूँगी
धोड़ी देर चाहे
पर बच्चों से बतियाऊंगी
उनकी मन पसंद
भाजी बनाऊंगी