भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस बार / आकांक्षा पारे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:48, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण ("इस बार / आकांक्षा पारे" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस बार
मिलने आओ तो
फूलों के साथ र्दद भी लेते आना
बांटेंगे, बैठकर बतियाएंगे
मैं भी कह दूंगी सब मन की।

इस बार
मिलने आओ तो
जूतों के साथ
तनाव भी
बाहर छोड़ आना
मैं कांधे पे तुम्हारे रखकर सिर
सुनाऊंगी रात का सपना।

इस बार
मिलने आओ तो
आने की मुश्किलों के साथ
दफ़्तर के किस्से मत सुनाना
तुम छेडऩा संगीत
मैं देखूंगी तुम्हारे संग
चांद का धीरे-धीरे आना।

इस बार
मिलने आओ तो
वक़्त मुट्ठी में भर लाना
मैं कस कर भींच लूंगी
तुम्हारे हाथ
हम दोनों संभाल लेंगे
फिसलता हुआ वक़्त

यदि
असम्भव हो इसमें से कुछ भी
मत सोचना कुछ भी
मैं इंतज़ार करूंगी फिर भी।