भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ क़ाज़ियों के बीच ही / अश्वघोष
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:32, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण
कुछ क़ाज़ियों के बीच में मुर्ग़ी हलाल है।
बस ये हमारे देश की ज़िन्दा मिसाल है।
चीलें मिलेंगी पेट को बिल्कुल भरे हुए,
पर आदमी को देखिए वो तंगहाल है।
क्यों भेड़ियों का राज है संसद के सहन में,
ज़हनों में आज सबके यही एक सवाल है।
यूँ तो सज़ा के गाँव को वो घर में ख़ुश हुए,
लगता है जैसे गाँव तो अब भी बवाल है।
बदलेगा ये निज़ाम भी बदलेगा एक दिन,
वो दिन नहीं है दूर ये मेरा ख़याल है।