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शुरुआत / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
वे सब चले गए
सब कुछ को रौंदकर, ध्वस्त कर
आश्वस्त कि उन्होंने कुछ भी अक्षत नहीं छोड़ा।
तब सूखी पत्तियों के ढेर में गुम हुए कीड़े की तरह
एक शब्द आया
और उसने अपने मुँह में थोड़ी सी मिट्टी
और तिनका उठाकर रचने की शुरुआत की।