भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अप्रकाशित कविता / असद ज़ैदी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:52, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

एक कविता जो पहले ही से ख़राब थी
होती जा रही है अब और ख़राब

कोई इन्सानी कोशिश उसे सुधार नहीं सकती
मेहनत से और बिगाड़ होता है पैदा
वह संगीन से संगीनतर होती जाती
एक स्थायी दुर्घटना है
सारी रचनाओं को उसकी बगल से
लम्बा चक्कर काटकर गुज़रना पड़ता है

मैं क्या करूँ उस शिथिल
सीसे-सी भारी काया को
जिसके आगे प्रकाशित कविताएँ महज तितलियाँ है और
सारी समालोचना राख

मनुष्यों में वह सिर्फ़ मुझे पहचानती है
और मैं भी मनुष्य जब तक हूँ तब तक हूँ।