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ख़्वाब मरते नहीं / फ़राज़
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ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें कि जो
रेज़ा-रेज़ा<ref>कण-कण</ref> हुए तो बिखर जाएँगे
जिस्म की मौत से ये भी मर जाएँगे
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब तो रोशनी हैं नवा हैं<ref>आवाज़</ref> हवा हैं
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़खों से भी फुकते नहीं
रोशनी और नवा के अलम
मक़्तलों<ref>वधस्थल</ref> में पहुँचकर भी झुकते नहीं
ख़्वाब तो हर्फ़<ref>अक्षर</ref> हैं
ख़्वाब तो नूर<ref>प्रकाश</ref> हैं
ख़्वाब सुक़रात <ref> जिन्हें सच कहने के लिए ज़ह्र का प्याला पीना पड़ा था</ref> हैं
ख़्वाब मंसूर<ref>एक वली(महात्मा) जिन्होंने ‘अनलहक़’ (मैं ईश्वर हूँ) कहा था और इस अपराध के लिए उनकी गर्दन काट डाली गई थी</ref>हैं.
शब्दार्थ
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