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ये आलम शौक़ का देखा न जाये / फ़राज़
Kavita Kosh से
ये आलम<ref>दशा</ref>शौक़ <ref>अभिलाषा</ref>का देखा न जाये
वो बुत<ref>मूर्ति</ref> है या ख़ुदा देखा न जाये
ये किन नज़रों से तुम ने आज देखा
के तेरा देखना देख ना जाये
हमेशा के लिये मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र<ref>दृश्य</ref> बारहा<ref>बार-बार</ref> देखा न जाये
ग़लत है जो सुना पर आज़मा<ref>परीक्षा लेकर</ref> कर
तुझे ऐ बेवफ़ा<ref>जो वफ़ादार न हो</ref> देखा न जाये
ये महरूमी<ref>असफलता</ref> नहीं पास-ए-वफ़ा है
कोई तेरे सिवा देखा न जाये
यही तो आश्ना<ref>परिचित्</ref> बनते हैं आख़िर
कोई नाआश्ना <ref>अपरिचित</ref>देखा न जाये
"फ़राज़" अपने सिवा है कौन तेरा
तुझे तुझ से जुदा देखा न जाये
शब्दार्थ
<references/>