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वादे की रात मरहबा, आमदे - यार मेहरबाँ / फ़िराक़ गोरखपुरी

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वादे की रात मरहबा, आमदे-यार मेहरबाँ
जुल्फ़े-सियाह शबफ़शाँ, आरिजे़-नाज़ महचकाँ।

बर्क़े-जमाल में तेरी, ख़ुफ़्ता<ref>सोया हुआ</ref> सुकूने-बेकराँ<ref>अपार शान्ति</ref>
और मेरा दिले-तपाँ<ref>व्याकुल हृदय</ref>, आज भी है तपाँ-तपाँ।

शाम भी थी धुआँ-धुआँ हुस्न भी था उदास-उदास
याद सी आके रह गयीं दिल को कई कहानियाँ।




शब्दार्थ
<references/>