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भोर / शशि पाधा
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नव किसलय ने खोलीं आँखें
डाल-डाल नूतन परिधान
हरी दूब जागी अलसाई
किसने छेड़ी मधुमय तान।
ओस कणों में हाथ डुबोए
स्वर्णिम किरणें घोलें रंग
खेल -खेल में चित्रित करतीं
कलिकाओं के कोमल अंग
कैसे नटखट लोभी भंवरे
पल भर में कर ली पहचान ।
चंचल सा इक पवन झकोरा
लेकर आया मलय सुगन्ध
आतुर सा कोई श्यामल बदरा
छू कर बरस गया निर्बन्ध
मौन हो गए पंछी कुछ पल
सुनने को लहरों का गान ।
अरूण छ्टा बिखरी अम्बर में
कैसा मोहक रूप शृंगार
पीत चुनरिया, कुंकुम केसर
पैंजनियों में राग बहार
सजधज निकली भोर क्षितिज से
खोले धरती द्वार-वितान।