भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भिक्षु / अवतार एनगिल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:23, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने कमण्डल को उल्टा कर
भिक्षु ने अपने सर पर डाल लिया
जाड़े की किटकिटाती रात में
ठिठुरता हुआ भिक्षु
एक अलाव के पास रुका
तो उसके गेरुआ वस्त्रों ने
आग पकड़ ली.
---सपना