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शिखर पर बौने / आग्नेय
Kavita Kosh से
नहीं ले सका
दीमक से उसका विध्वंस
मधुमक्खियों से उनका रस
तितलियों से उनका रंग
चींटियों से उनका गौरव
नहीं ले सका
सर्वहारा से उनका साहस
मित्रों से उनकी आत्मीयता
मनुष्यों से उनका सम्मान
अपनी दरिद्रता ओढे हुए
सोता रहा विद्वानों की सभाओं में
अपनी ही ग्लानि पोते हुए मुख पर
दिखता रहा सबको सब स्थानों पर
अपनी पीठ पर असंख्य धिक्कार लादे
दौड़ता रहा सीढ़ियों पर
पहुँचने के लिए वहाँ
बसते हैं जहाँ
बौने शिखरों पर